इमेर्जेंसी : फणीश्वर नाथ रेणु

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इस ब्लाक के मुख्य प्रवेश-द्वार के समने
हर मौसम आकर ठिठक जाता है
सड़क के उस पार
चुपचाप दोनों हाथ
बगल में दबाए
साँस रोके
ख़ामोश
इमली की शाखों पर हवा


'ब्लाक' के अन्दर
एक ही ऋतु
हर 'वार्ड' में बारहों मास
हर रात रोती काली बिल्ली
हर दिन
प्रयोगशाला से बाहर फेंकी हुई
रक्तरंजित सुफ़ेद
खरगोश की लाश
'ईथर' की गंध में
ऊंघती ज़िन्दगी


रोज़ का यह सवाल, 'कहिए! अब कैसे हैं?'
रोज़ का यह जवाब-- ठीक हूँ! सिर्फ़ कमज़ोरी
थोड़ी खाँसी और तनिक-सा... यहाँ पर... मीठा-मीठा दर्द!
इमर्जेंसी-वार्ड की ट्रालियाँ
हड़हड़-भड़भड़ करती
आपरेशन थियेटर से निकलती हैं- इमर्जेंसी!


सैलाइन और रक्त की
बोतलों में क़ैद ज़िन्दगी!
-रोग-मुक्त, किन्तु बेहोश काया में
बूंद-बूंद टपकती रहती है- इमर्जेंसी!

सहसा मुख्य द्वार पर ठिठके हुए मौसम
और तमाम चुपचाप हवाएँ
एक साथ
मुख और प्रसन्न शुभकामना के स्वर- इमर्जेंसी!


('धर्मयुग'/ 26 जून, 1977 में पहली बार प्रकाशित)
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ई बुढिया अछि हक्कल डइन

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नैहर में सिखलक सावर्ण मंत्र
नहि काज करै एकरा लग कोनो जंत्र
पहिने खेलक अप्पन सांय
सालेक भीतर जावत भेल धांय
तखन भुजय लागल टोल आ गाम
एकरा लग के बुद् बच्चा नैन्ह
ई बुढिया अछि हक्कल डइन

नहि छैक एकरा कोनो लाज विचार
ककरा संग करी कोण व्यव्हार
नहि बजाबय कियो काज तिहार
तैयो टपकी परैया बीचे द्वार
नव कनिया खेला लगैत अछि भूत
बाम हाथ से जाकर छुबय चैन
ई बुढिया अछि हक्कल डइन

ककरो मरैया सांप कटा के
ककरो मरैया रोग ढूका के
ककरो मरैया दर्द करा के
ककरो मरैया धार डूबा के
नहि छोरैया बुढिया ओकरा
रहै छैक जाकर पर कैन
ई बुढिया अछि हक्कल डइन

बिच राईत में गाछ हंकैया
निशाभाग राईत में गाम घुमैया
पोषने अछि चुरिन, भूत जुआन
करैया टोल परोस परेशान
नहि बचल ओ लोक आई धरि
तकैया जाकर दिस कन्खुरिये नैन
ई बुढिया अछि हक्कल डइन

दुनियाँ आई अन्तरिक्ष घुमैया
सागर में पताका भह्राबैया
चंदरमा पर बसत आब लोक
भारत खोजि लेलक ओतय पानि
नहि भेल हमर सोच में अंतर
अखनो भूत, प्रेत आ डाइन
ई बुढिया अछि हक्कल डइन
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हे नेता जी अहाँ के प्रणाम

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हे नेता जी अहाँ के प्रणाम
एक बेर नहि सत्त-सत्त बेर
करैत छी अहाँ के नित्य प्रणाम
हे नेता जी अहाँ के प्रणाम

दू अक्षर सँ बनल ई नेता
देशक बनल अछि भाग्यविधाता
आई-काल्हि ओहा अछि नेता
जकरा लग अछि गुंडाक ठेका
जाल-फरेब फुसि में माहिर
घोटाला में सतत प्रधान
हे नेता जी अहाँ के प्रणाम

खादी कुरता नीलक छीटका
मुंह में चबेता हरदम पान
मौजा ऊपर नागरा जूता
उज्जर गमछा सोभय कान्ह
जखन देखू चोर-उच्चका
भरल रहै छैन सतत दलान
हे नेता जी अहाँ के प्रणाम

केने छैथ ई भीष्म प्रतिज्ञा
झूठ छोडि नहिं बाजब सत्य
हाथी दांतक प्रयोग कय के
मुंह पर बजता सबटा पद्य
कल-बल-छल के वल पर सदिखन
जीत लैत छैथ अप्पन मतदान
हे नेता जी अहाँ के प्रणाम

गाम विकाशक परम विरोधक
होबय नहि देता एकोटा काज
बान्ह-धूर स्कूल पाई सँ
बनबैत छैथ ओ अप्पन ताज
स्त्री शिक्षाक जँ बात करू तँ
मुईन लैत छैथ अप्पन कान
हे नेता जी अहाँ के प्रणाम

दयाकान्त
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ईक्क्स्वी सदी फगुआ

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